सरकारी योजनाएं
उदय
देश में राज्य डिस्कॉमों की भारी संचित हानियां और बकाया ऋण हैं। वित्तीय रूप से दबावयुक्त डिस्कॉम वहनीय दरों पर पर्याप्त विद्युत की आपूर्ति करने में सक्षम नहीं हैं जिससे जीवन की गुणवत्ता और समग्र आर्थिक वृद्धि तथा विकास में बाधा आती है। 100 प्रतिशत गांवों के विद्युतीकरण के निमित्त, 24x7 विद्युत आपूर्ति और स्वच्छ ऊर्जा के प्रयास निष्पादन करने वाले डिस्कॉमों के बिना पूरे नहीं किए जा सकते। विद्युत बंदी भी "मेक इन इंडिया" और "डिजिटल इंडिया" जैसी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है। इसके अतिरिक्त, वित्तीय रूप से दबावयुक्त डिस्कॉमों द्वारा बैंक ऋणों के संबंध में दोषी होने पर बैंकिंग क्षेत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और अंततः अर्थव्यवस्था प्रभावित होने की संभावना रहती है।
इस स्थिति में सुधार लाने के लिए विद्युत वितरण कंपनियों के आमूल-चूल वित्तीय परिवर्तन के लिए "उदय" योजना (उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना) तैयार की गई है और डिस्कॉमों के प्रचालनात्मक तथा वित्तीय आमूल-चूल परिवर्तन के लिए और इस समस्या के संधारणीय स्थानी हल सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न दावेदारों के साथ परामर्श करके 20 नवंबर, 2015 को शुरू किया गया था। उदय योजना में सभी क्षेत्रों में उत्पादन, पारेषण, वितरण, कोयला और ऊर्जा दक्षता में सुधारात्मक उपायों की परिकल्पना है।
उदय योजना की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- यह योजना डिस्कॉमों के संधारणीय वित्तीय एवं प्रचालनात्मक आमूल-चूल परिवर्तन के लिए तैयार और शुरू की गई है; इसमें लगभग 4.3 लाख करोड़ रुपए (वित्तीय वर्ष 2014-15 तक) के पैतृक ऋणों के स्थायी समाधान का प्रावधान है और संभावित भावी हानियों को हल करने की भी व्यवस्था है।
- चार पहलों के माध्यम से अगले 2-3 वर्षों में पूरा करने के अवसर के साथ डिस्कॉमों को अधिकार देता है।
- प्रचालनात्मक दक्षता सुधार, यथा – अनिवार्य स्मार्ट मीटरिंग, ट्रांसफार्मरों, मीटरों आदि का उन्नयन, लगभग 22 प्रतिशत से 15 प्रतिशत तक औसत एटीएंडसी हानि कम करने के लिए दक्ष एलईडी बल्ब, कृषि पम्प, पंखे एवं एयर कंडीशनर आदि जैसे दक्षता संबंधी उपाय; एसीएस और एआरआर के बीच 2018-19 तक अंतराल को समाप्त करना।
- सस्ते घरेलू कोयले की बढ़ी हुई आपूर्ति, कोयला संपर्क युक्तिसंगत बनाने, अदक्ष से दक्ष संयंत्रों में उदार कोयला आपूर्ति करने, जीसीवी के आधार पर कोयले की कीमत को युक्तिसंगत बनाने, धुले और चूरा किए हुए कोयले की आपूर्ति तथा पारेषण लाइनों को तेजी से पूरा करने जैसे उपायों के माध्यम से विद्युत लागत में कमी करना।
30 सितंबर, 2015 की स्थिति के अनुसार, डिस्कॉम ऋण का 75 प्रतिशत से अधिक लेने वाले राज्यों के माध्यम से वित्तीय परिवर्तनः
- 2015-16 में डिस्कॉमों का 50 प्रतिशत ऋण और 2016-17 में 25 प्रतिशत ऋण लिया जाना – राज्यों द्वारा लिए गए ऋण पर ब्याज लागत को लगभग 8-9 प्रतिशत तक कम करना, जो कि 14-15 प्रतिशत तक अधिक है। जो राज्य 2016-17 में इस योजना में आए, उन्होंने 2016-17 में 75 प्रतिशत ऋण लिया।
- राज्य द्वारा जो डिस्कॉम ऋण नहीं दिया गया है, उसे बैंक की आधार दर एवं 0.1 प्रतिशत से अनधिक की ब्याज दर पर ऋणों अथवा बांडों में बैंकों/वित्तीय संस्थाओं द्वारा परिवर्तित किया जाएगा। वैकल्पिक रूप से यह ऋण डिस्कॉम द्वारा विद्यमान बाजार दरों पर राज्य गारंटी सुधार डिस्कॉम बांडों के रूप में डिस्कॉम द्वारा पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से जारी किया जा सकता है जो कि बैंक आधार दर और 0.1 प्रतिशत के बराबर अथवा उससे कम होगा।
- आरंभिक वर्षों में राज्यों के राजकोष के अंतर्गत ब्याज भुगतान का प्रबंधन करने में लचीलापन देने के लिए तीन वर्षों में राज्यों पर वित्तीय भार फैलाने के लिए अन्य प्रावधान।
टिप्पणीः जो राज्य दबाव में हैं अथवा जहां विद्युत का प्रबंधन राज्य संचालित विद्युत विभाग द्वारा किया जाता है न कि डिस्कॉमों द्वारा, उन्हें प्रचालनात्मक मानदंडों पर उदय में आने की अनुमति दी गई थी और उन्हें डिस्कॉम ऋण को लेने की आवश्यकता नहीं थी। दस राज्य और एक संघ राज्य क्षेत्र प्रचालनात्मक मानदंडों पर उदय में शामिल हुए।
प्रतिभागी राज्यों के लिए भावी वित्तीय निष्पादन के लिए प्रोत्साहन/गैर-प्रोत्साहन के लिए प्रावधानः
- राज्यों को ग्रेड युक्त तरीके से डिस्कॉमों की हानियों (यदि कोई हों) का कम से कम 50 प्रतिशत लेना तथा वित्तपोषण करना।
- राज्य डिस्कॉम द्वारा 01 अप्रैल, 2012 से बकाया नवीकरणीय क्रय दायित्व (आरपीओ) का पालन करना।
- उदय को स्वीकार करने वाले और प्रचालनात्मक लक्ष्यों के अनुसार निष्पादन करने वाले राज्यों को डीडीयूजीजेवाई, आईपीडीएस और पीएसडीएफ अथवा विद्युत मंत्रालय एवं नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की ऐसी अन्य योजनाओं के माध्यम से अतिरिक्त/प्राथमिकता वित्तपोषण दिया जाएगा।
- इन राज्यों को अधिसूचित कीमतों पर अतिरिक्त कोयले की सहायता भी दी जाएगी और यदि अधिक क्षमता उपयोग के माध्यम से उपलब्ध हो तो एनटीपीसी और अन्य केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (सीपीएसयू) से कम कीमत पर विद्युत दी जाएगी।
- जो राज्य प्रचालनात्मक लक्ष्य पूरे नहीं करते, आईपीडीएस और डीडीयूजीजेवाई के अनुदानों के संबंध में उनके दावे रद्द किए जा सकते हैं।
राज्यों की प्रतिभागिता और बॉण्ड जारी करने की स्थितिः
अब तक हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापनः
व्यापक (16 राज्य): झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, हरियाणा, जम्मू व कश्मीर, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, असम, तमिलनाडु और मेघालय।
केवल प्रचालनात्मक (10 राज्य, 1 संघ राज्य क्षेत्र): गुजरात, उत्तराखंड, गोवा, कर्नाटक, पुडुचेरी, मणिपुर, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, केरल, त्रिपुरा और मिजोरम।
बॉण्ड जारी करने की स्थिति (2.32 लाख करोड़ रुपए)
15 राज्यों ने 2.09 लाख करोड़ रुपए मूल्य के बॉण्ड जारी किए हैं और डिस्कॉमों ने अब तक 0.24 लाख करोड़ रुपए मूल्य के बॉण्ड जारी किए हैं। बॉण्ड बैंकों (1.16 लाख करोड़ रुपए), ईपीएफओ (0.53 लाख करोड़ रुपए), एलआईसी (0.09 लाख करोड़ रुपए) और म्युच्युअल फंड आदि सहित अन्य (0.48 लाख करोड़ रुपए) द्वारा लिए गए हैं।
मार्च, 2017 की स्थिति के अनुसार निष्पादन संबंधी समीक्षा
इसके प्रारंभ के एक वर्ष में ही उदय योजना स्वतः ही उत्साहवर्द्धक परिणाम दर्शा रही है। डिस्कॉम सक्रिय रूप से उदय पटल पर आंकड़े भर रहे हैं और कुछ सकारात्मक परिणाम आए हैं।
एटीएंडसी हानि
एटीएंडसी हानि का राष्ट्रीय औसत (सभी उदय राज्य) वित्तीय वर्ष 2016 में 21.1 प्रतिशत से घटकर वित्तीय वर्ष 2017 में 20.1 प्रतिशत तक नीचे आ गया है। कुल 11 राज्यों ने वित्तीय वर्ष 2016 के स्तर से अपनी एटीएंडसी हानि कम की है।
उदय की पहलों के तहत डिस्कॉमों की बिलिंग और संग्रहण दक्षता पर सतत जोर दिया गया है। अखिल भारतीय स्तर पर बिलिंग दक्षता वित्तीय वर्ष 2016 में 81 प्रतिशत से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2017 में 83 प्रतिशत अर्थात ~2 प्रतिशत तक बढ़ी है।
विद्युत क्रय लागत
विद्युत क्रय लागत 6 राज्यों में कम हो गई है। समग्र स्तर पर यह लागत वित्तीय वर्ष 2016 में 4.20 रुपए प्रति यूनिट से घटकर वित्तीय वर्ष 2017 में लगभग 4.16 रुपए प्रति यूनिट हो गई है।
इन राज्यों में इनपुट लागत अनुकूलतम बनाने के लिए विभिन्न उपाय अपनाए हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- आंध्र प्रदेश, बिहार, हरियाणा और गुजरात में विद्युत केंद्रों (आईईएक्स और पीएक्सआईएल) से काफी बढ़कर सस्ती विद्युत की खरीद की है।
- लगभग सभी राज्यों ने विद्युत खरीद के लिए मेरिट ऑर्डर डिस्पैच (एमओडी) सिद्धांत को अपनाया है और महंगी विद्युत को अभ्यर्पित किया है।
- कुछ संयंत्रों की उत्पादन लागत आयातित कोयले के प्रयोग में कमी के कारण कम हुई है (उपर्युक्त राज्यों के कुछ राज्य उत्पादन कंपनियां और कुछ एनपीटीसी संयंत्र)।
- कुछ उत्पादन केंद्रों ने "ऑल रेल रूट" (उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश) और संपर्क युक्तिसंगतीकरण (हरियाणा राज्य संयंत्र, कुछ एनटीपीसी संयंत्र) का प्रयोग करके ईंधन परिवहन लागत को कम किया है।
लाभों पर ब्याज
उदय के अंतर्गत वितरण यूटिलिटियों के वित्तीय आमूल-चूल परिवर्तन को गति देने के लिए शामिल किए गए प्रमुख तत्वों में से एक तत्व पैतृक भार को समाप्त करने हेतु वितरण कंपनियों के ऋण का वित्तीय पुनर्निर्माण करना है। जैसा कि उल्लेख किया है, 16 राज्यों की सरकारों ने उदय समझौता ज्ञापन की शर्तों के अनुसार वितरण कंपनियों के लगभग 2.08 लाख करोड़ रुपए का ऋण ले लिया है। ये ऋण लगभग 11-12 प्रतिशत प्रति वर्ष की ब्याज दर पर चल रहे थे जो अब राज्यों द्वारा 7 प्रतिशत – 8.5 प्रतिशत की दर पर दिए जाएंगे।
इसके अतिरिक्त, कुछ डिस्कॉमों ने घटी हुई दरों पर शेष ऋण के अपने भाग का भी पुनर्गठन किया है जिससे भी लगभग 3 प्रतिशत – 4 प्रतिशत तक ब्याज भार कम होगा। उपर्युक्त के कारण ब्याज लाभों के निमित्त डिस्कॉमों की हुई बचतें हस्तांतरण और पुनर्गठन के कारण मार्च, 2017 तक लगभग 15,000 करोड़ रुपए बनती हैं।
एसीएस-एआरआर अंतरालः
एसीएस-एआरआर अंतराल में कमी ब्याज लागत की बचत, विद्युत क्रय लागत, प्रशुल्क युक्तिसंगतीकरण, बेहतर बिलिंग/संग्रहण दक्षता आदि में बचतों का संयुक्त प्रभाव और आशा है कि ये लाभ जारी रहेंगे तथा भविष्य में इनमें और सुधार आएगा और विद्युत वितरण यूटिलिटियों को संधारणीयता प्रदान करेंगी।
औसत आपूर्ति लागत (एसीएस) और औसत राजस्व वसूली (एआरआर) के बीच अंतराल 12 राज्यों में कम हुआ है। समग्र स्तर पर वित्तीय वर्ष 2016 में 59 पैसा प्रति यूनिट से घटकर वित्तीय वर्ष 2017 में लगभग 46 पैसा प्रति यूनिट हो गया है।
डिस्कॉमों का आमूल-चूल परिवर्तन
- यद्यपि, गुजरात डिस्कॉम सकारात्मक आधार स्तर बनाए हुए हैं, तथापि, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश डिस्कॉम आमूल-चूल परिवर्तन की शुरूआत में हैं।
- राजस्थान डिस्कॉमों ने अपनी बुक हानियां ~70 प्रतिशत तक कम कर दी हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और असम के डिस्कॉमों ने अपनी बुक हानियां कम कर दी हैं।
हानियों को कम करने और वित्तीय व्यवस्था पर बढ़े हुए जोर के साथ बुक हानियां आगामी वर्षों में और कम होने की आशा है।
प्रचालनात्मक विशेषताएं
- उजाला स्कीम के अंतर्गत अब तक 2031 लाख एलईडी बल्ब वितरित किए गए हैं जिससे 10,500 करोड़ रुपए की वार्षिक बचत हुई है और 21.3 मिलियन टन प्रति वर्ष कार्बन उत्सर्जन से बचा गया है।
- 2,137 फीडरों के शहरी फीडर मीटरिंग लक्ष्य की तुलना में 4,113 फीडरों पर मीटर लगाए गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में 10,744 के लक्ष्य की तुलना में 8,669 फीडरों पर मीटर लगाए गए हैं, 50,754 फीडरों के लक्ष्य की तुलना में 87,662 ग्रामीण फीडरों की जांच की जा रही है। इससे डिस्कॉमों को एटीएंडसी हानियां कम करने में मदद मिलेगी।
- उदय के बाद 91 लाख घरेलू घरों का विद्युतीकरण किया गया है। आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मणिपुर, असम और उत्तराखंड में घरों के कनेक्शनों के लिए उदय के लक्ष्य से अधिक कनेक्शन लगाए गए हैं। अकेले बिहार ने 40 लाख घरेलू कनेक्शनों का लक्ष्य प्राप्त किया है।
- उदय अवधि के दौरान नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता मार्च, 2016 में 42,849 मेगावाट से बढ़कर, मार्च, 2017 में 57,260 मेगावाट हो गई है।
राज्य सब्सिडी पर निर्भरता में कम हुई प्रवृत्ति
- सात (7) राज्यों से बारह (12) डिस्कॉमों ने पिछले वर्ष से सब्सिडी पर निर्भरता (बुक की गई सब्सिडी/कुल राजस्व) कम कर दी है। मार्च, 2017 तक मुख्य सुधार एपीईपीडीसीएल (10 प्रतिशत से 2 प्रतिशत), डीवीवीएनएल, उत्तर प्रदेश (30 प्रतिशत से 17 प्रतिशत) और एसबीपीडीसीएल, बिहार (46 प्रतिशत से 40 प्रतिशत) से जानकारी में आए हैं।
- आंशिक सुधार (1-3 प्रतिशत) छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक और अन्य उत्तर प्रदेश के डिस्कॉमों से जानकारी में आए हैं।
- औद्योगिक और गैर-घरेलू क्षेत्रों को बढ़ी हुई बिक्री तथा अनुकूल क्रॉस सब्सिडी से राज्यों की सब्सिडी पर निर्भरता और भी कम हो सकती है।
उदय और आरईसी
आरईसी के सितंबर, 2015 में डिस्कॉम ऋण के लगभग 78,000 करोड़ रुपए थे (जो उदय के अंतर्गत शामिल थे) और अब तक उसने 2015-16 के दौरान (~9000 करोड़ रुपए) और 2016-17 के दौरान (~34000 करोड़ रुपए) 43,000 करोड़ रुपए वापस प्राप्त कर लिए हैं। कुछ डिस्कॉमों ने वित्तीय पुनर्गठन नहीं किया है अथवा आंशिक पुनर्गठन किया है। लगभग 10,000 करोड़ रुपए का डिस्कॉम 25 प्रतिशत भाग वापस प्राप्त हो सकता है अथवा उसकी पुनः कीमत निर्धारित की जा सकती है।
आरईसी उचित रूप से लम्बी अवधि तथा उदय जैसे नीतिगत कार्यक्रम के लिए ऋण देता है जो अनिवार्य रूप से इस क्षेत्र के प्रमुख मुद्दों को हल करता है और जो निश्चित रूप से इसके लाभ के लिए है। जब क्षेत्र सशक्त होता है तो मूल्य में वृद्धि होती है और निवेशकों का आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
उदय ने आरईसी को डिस्कॉमों के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर भी प्रदान किया है। हानि कम करने, स्मार्ट मीटरों के लिए वित्तपोषण, स्मार्ट ग्रिड, ग्रीन एनर्जी अवसंरचना जैसे ऐसे क्षेत्र हैं जहां आरईसी अथवा उसकी सहायक कंपनियां व्यापक भूमिका निभा रही हैं।
विद्युत क्षेत्र के प्रचालनों में प्रतिमान परिवर्तन हो रहा है। अधिक से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं, जो स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करती हैं, आनी निश्चित हैं जिनके लिए भी ग्रीन कॉरीडोर की आवश्यकता होगी। यद्यपि, पारंपरिक ऊर्जा अपनी भूमिका निभाएगी, तथापि, हमारे व्यापारिक अवसर नवीकरणीय क्षेत्र से बढ़कर आएंगे और सशक्त वितरण यूटिलिटियां रुपांतरण करने में सक्षम होंगी। अतः यहां भी आरईसी जैसी विद्युत क्षेत्र की वित्तीय संस्थाएं उदय का कार्यान्वयन बहुत उपयोगी पाएंगी।